रूस ने जब अपना चंद्र मिशन लूना-25 लॉन्च किया तो कहा गया कि ये भारत के चंद्रयान-3 से पहले चांद की सतह पर पहुँचेगा.
भारत ने 14 जुलाई को चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण किया था और यह 23 अगस्त को चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने की योजना थी।
चंद्रयान-3 के प्रक्षेपण के 28 दिन बाद, 21 अगस्त को रूस ने लूना-25 को प्रक्षेपित किया था जिसका उद्देश्य चांद की सतह पर उतरना था।
हालांकि, दुखद तौर पर, लूना-25 की लैंडिंग से एक दिन पहले, यानी 20 अगस्त को, इसका क्रैश हो गया।
इसी बीच, चंद्रयान-3 धीरे-धीरे चांद की ओर बढ़ रहा है और अब वह लैंडिंग के लिए तैयार हो चुका है। इस लैंडिंग के संदर्भ में इसरो के वैज्ञानिकों की सकारात्मकता दर्शाई जा रही है।
विदेशी मीडिया भी रूस के चंद्र मिशन की नाकामी और भारत के चंद्रयान-3 के प्रति उम्मीद से परिपूर्ण दृष्टिकोण से देख रहा है।
आगे पढ़िए, कुछ प्रमुख विदेशी मीडिया संस्थानों में भारत और रूस के चंद्र मिशन के बारे में क्या छपा है।

रूस की नाकामी की वजह?
समाचार एजेंसी एपी ने रिपोर्ट की है कि रूस के लूना-25 मिशन की क्रैश होने पर।
इस रिपोर्ट में रूसी स्पेस एजेंसी के प्रमुख द्वारा दिये गए बयान को दर्शाया गया है, जिसमें उन्होंने लंबे समय तक चलने वाले चंद्र मिशन में रूसी निष्क्रियता की वजह से लूना-25 मिशन की असफलता का कारण बताया था।
रूसी अंतरिक्ष एजेंसी के प्रमुख, यूरी बोरिसोव ने कहा, ”जो काम 84 सेकेंड में होना था, वह 127 सेकेंड तक लिया गया। इसके कारण एक आपात स्थिति उत्पन्न हुई.”
लूना-25, जो 1976 के बाद रूस की पहली चंद्र मिशन थी, उसके संदर्भ में यूरी बोरिसोव ने कहा, ”पिछले 50 सालों में चंद्र मिशन को प्रगति की राह में कई बाधाएं आईं हैं, जो इस असफलता की मुख्य वजह हैं। अगर रूस इस कार्यक्रम को अब बंद कर देता है, तो यह सबसे खराब निर्णय हो सकता है।’
एपी रिपोर्ट करता है कि लूना-25 और चंद्रयान-3 ने एक दौड़ में भाग लिया था, जहां चंद्रयान-3 दक्षिणी ध्रुव पर उतरने का प्रयास कर रहा है। 21 से 23 अगस्त के बीच, रूस और भारत ने चांद की सतह पर उतरने का निर्णय लिया था।
2019 में, भारत ने चांद पर उतरने की कोशिश की थी, लेकिन उस समय उनके स्पेसक्राफ्ट का दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।
लूना-25 रूस के लिए कई महत्वपूर्ण हासिल करता है। यूक्रेन के साथ चल रही टकराव के बीच, रूस दुनिया को यह संदेश देना चाहता था कि वह चांद तक की यात्रा में भी सक्षम है।
यूक्रेन के साथ 18 महीनों से चल रहे टकराव के कारण पश्चिमी देशों ने रूस पर सख्त प्रतिबंध लगाए हैं।
ये प्रतिबंध रूस के अंतरिक्ष कार्यक्रम को भी प्रभावित करते हैं, क्योंकि तकनीकी सहायता प्राप्त करने में रुकावटें हैं।
लूना-25 मिशन की प्राथमिकता थी कि वह एक छोटे से रोवर को साथ लेकर चांद पर जाए, लेकिन इस विचार को छोड़ दिया गया।
वैज्ञानिकों के अनुसार, दक्षिणी ध्रुव पर हमेशा से ही ध्वस्त क्रेटर्स में पानी जमा हो सकता है। इस पानी का उपयोग भविष्य में रॉकेट प्रक्षेपण के तरीके के रूप में किया जा सकता है।

भारत से रेस लगा रहा था रूस मगर…
फाइनेंशियल टाइम्स ने भारत और रूस के चंद्र मिशन की तुलना की है, इसके अनुसार, लूना-25 मिशन में रूस ने भारत को पछाड़ दिया था। लेकिन रूस के लूना-25 मिशन में क्रैश हो गया, जबकि भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की तैयारी में है।
लूना-25 के मिशन के असफल होने से रूस के भविष्य में चांद पर जाने की प्रयासों पर भी संदेह होता है। खासकर जब यूक्रेन के साथ रूस एक महंगे साबित होते युद्ध का सामना कर रहा है।
साथ ही, रूस को अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण पश्चिमी तकनीक और अनुसंधान का उपयोग करने में भी कठिनाइयाँ आ रही हैं।
आरबीएसी से बात करते हुए रूसी विशेषज्ञ अलेक्जेंडर ज़ेहेलेज़ंयाकोव ने कहा, ”अंतरिक्ष में होने वाली किसी भी असफलता का देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर असर पड़ता है। रूस के मामले में, नए लैंडर्स को बनाने की रणनीति को बदलने की आवश्यकता हो सकती है, क्योंकि 47 साल बीत गए हैं और तब से अब में कई बदलाव हुए हैं।”
उन्होंने इस रिपोर्ट में कहा, ”विज्ञान और तकनीक में बड़ी तेजी से प्रगति हुई है, लेकिन दुर्भाग्यवश्य, हम पिछले सालों में कुछ पीछे चले गए हैं। हमें फिर से उत्साह में आने की आवश्यकता है और सब कुछ फिर से सीखना होगा।”
फाइनेंशियल टाइम्स लिखता है कि सोवियत अंतरिक्ष कार्यक्रम के दौर में महत्वपूर्ण वैज्ञानिक मिखैल मारोव को लूना-25 के मिशन के असफल होने से बहुत दुःख हुआ।
मारोव ने बताया कि लूना-25 उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था और उन्हें यह ख़बर सुनकर अस्पताल में भर्ती होना पड़ा।

चांद पर भीड़
वॉशिंगटन पोस्ट ने एक शीर्षक ‘चांद पर भीड़’ के साथ रूस के चंद्र मिशन के असफल होने और भारत के चांद तक पहुंचने की कोशिशों की रिपोर्ट को साझा किया है।
इस अमेरिकी अख़बार ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया कि चांद शायद मृत या बिना जीवन के हो सकता है, लेकिन वर्तमान में चांद सौर मंडल का सबसे लोकप्रिय ‘रियल एस्टेट’ है, जिस पर कई देशों की नज़र है।
इसके अनुसार, रूस ने 21 अगस्त को चांद पर पहुंचने का प्रयास किया था, और भारत 23 अगस्त को चांद पर उतरने की योजना बना रहा है।
लेकिन दुर्भाग्यवश, रूस का लूना-25 मिशन रविवार को क्रैश हो गया।
इसके अलावा, रूस के साथ ही जापान भी इस दिशा में कदम बढ़ा रहा है। जापानी स्पेस एजेंसी भी एक छोटे लैंडर को चांद पर भेजने की तैयारी कर रही है, ताकि वे लैंडिंग से जुड़ी तकनीक का परीक्षण कर सकें।
इसराइल और जापान की निजी कंपनियां ने पिछले कुछ सालों में स्पेसक्राफ्ट को चांद पर लैंड करने की अनफ़ोर्चुनेट कोशिशें की है।
चीन भी अपनी योजना के तहत 2030 तक अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर भेजने की तैयारी में है।
वहीं, अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा भी लंबे समय तक बने रहने वाले अंतरिक्ष इंफ्रास्ट्रक्चर की तैयारी में है।
वॉशिंगटन पोस्ट बताता है कि इन सभी घटनाओं से कहीं न कहीं एक प्रतिस्पर्धा की शुरुआत हो चुकी है। अब मुद्दा यह नहीं है कि कौन किससे आगे है, बल्कि यह बात अब किसी एक स्थान पर पहले पहुंचने की हो रही है।
दक्षिणी ध्रुव पर मौजूद पानी तक पहुंचना बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि मानवीय बस्तियों के लिए पानी सबसे अधिक आवश्यक है।
साथ ही, दक्षिणी ध्रुव पर पाए गए पानी में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का उपयोग रॉकेट ईंधन के रूप में किया जा सकता है। चांद पर एक गैस स्टेशन बनाने की संभावनाएं भी हैं, जो अंतरिक्ष में अन्य स्थलों पर पहुंचने को आसान बना सकता है।
नासा ने यह अनुमान लगाया है कि आगामी दसवीं दशक में चंद्र पर मानवीय यातायात की व्यवस्था पहले की तुलना में काफी अधिक हो सकती है।
वॉशिंगटन पोस्ट लिखता है कि भारत अपने अंतरिक्ष सपनों को पूरा करने के प्रयास में है। इसी दिशा में, 2019 में हुए चंद्र मिशन की असफलता के बाद उन्होंने चंद्रयान-3 के साथ चांद पर उतरने की योजना बनाई है।
यदि सब कुछ ठीक रहा तो 23 अगस्त को चंद्रयान-3 चंद पर लैंड हो सकता है।
इससे पहले, 2019 में चीन और इसराइल की निजी कंपनियां भी ऐसे प्रयासों को किया था, लेकिन वे सफल नहीं हुए थे।

चांद के संसाधनों पर पहले किसका हक़?
चीन जिस गति से चांद पर अपनी गतिविधियाँ बढ़ा रहा है, उससे अमेरिकी प्रशासन चिंता में है।
कुछ समय पहले, नासा से जुड़े व्यक्तियों ने इस विषय में अपने विचार साझा किए थे।
वॉशिंगटन पोस्ट लिखता है कि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि दुनिया के बाक़ी देश चांद के संसाधनों का कैसे और कितना उपयोग करेंगे?
मगर अमेरिका की नासा और विदेश मंत्रालय ने पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए एक कार्यक्रम तैयार किया है। इस कार्यक्रम को ‘अर्टेमिस अकॉर्ड’ कहा जाता है।
इसमें चांद की सतह पर शांतिपूर्ण तरीके से व्यवहार करने से जुड़े नियमों का वर्णन है। इस समझौते में अब तक 30 देश हस्ताक्षर कर चुके हैं।
इस समझौते में नियम शामिल हैं कि जो भी वैज्ञानिक खोज करेगा, उसे उसे सार्वजनिक करना होगा, और साथ ही चांद की सतह पर सुरक्षित क्षेत्रों की व्यवस्था की जाएगी, जिनमें देश बिना किसी प्रवेश के काम कर सकेंगे।
भारत ने भी इस समझौते में जून में हस्ताक्षर किए हैं। मगर रूस और चीन अब तक इसमें शामिल नहीं हुए हैं। इस परिस्थिति में यह सवाल है कि रूस और चीन चांद पर कैसे व्यवहार करेंगे?

भारत की उम्मीदें बढ़ीं
वॉल स्ट्रीट जर्नल ने भारत के चंद्र मिशन पर रिपोर्ट की है और हेडिंग में उम्मीदों के बढ़ने का ज़िक्र किया गया है।
अपनी रिपोर्ट में यह अख़बार लिखता है कि रूस के लूना-25 के क्रैश होने से भारत के लिए चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सबसे पहले पहुँचने वाले मुल्क बनने का रास्ता साफ़ हो गया है।
रिपोर्ट में लिखा है कि अगर भारत ऐसा करने में सफल रहा तो वह दुनिया के अंतरिक्ष कार्यक्रम के मामले में मज़बूत स्थिति में होगा।
चंद्रयान-3 के सहारे भारत चांद की ऐसी जगह पहुँचना चाहता है, जहाँ पानी हो सकता है, जो भविष्य में मानव बस्तियों को बसाने में मददगार बन सकता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, जब भारत चांद पर लैंडिंग की तैयारी कर रहा था, तो अचानक लूना-25 के हादसे के कारण उसने रूस के साथ दौड़ में शामिल हो लिया। लेकिन दुखद तौर पर, लूना-25 की क्रैश हो गई।
इसरो के एक अधिकारी ने रूस के चंद्रमिशन के असफलता पर अफ़सोस व्यक्त करते हुए कहा – ‘हमें उम्मीद थी कि हम चांद पर सफलता प्राप्त करेंगे।’
चंद्रयान-3 के चांद पर पहुंचने से भारत अंतरिक्ष कार्यक्रमों में अग्रणी देशों की सूची में शामिल हो जाएगा। इससे पहले, अमेरिका, रूस (सोवियत संघ) और चीन ने इस क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई है।
अंतरिक्ष कार्यक्रमों के पटकथे में इस मिशन से भारत अपनी मजबूत क्षमताओं को प्रस्तुत करेगा। इस मिशन की सफलता से, दुनिया भर में भारत की स्थिति में बदलाव देखने को मिलेगा।


रूस से लंबा सफर
वॉल स्ट्रीट जर्नल ने बताया है कि भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का वित्त अमेरिका और चीन की तुलना में कम है। हाल के बजट में भारत ने अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए 1.5 अरब डॉलर यानी लगभग 12 हज़ार करोड़ रुपये आवंटित किए थे।
यह बजट अमेरिका में 25 अरब डॉलर, जो लगभग दो लाख करोड़ रुपये होते हैं, की तुलना में कम है।
कनाडा की मैकगिल यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर राम जाखू ने डब्ल्यूएसजे को बताया कि ”चंद्रयान-3 की सफलता के बाद भारत उभरते हुए देशों के अंतरिक्ष कार्यक्रम में सहायक बन सकता है। आपकी सफलता के बाद, हर कोई आपके पास आता है।”
वॉल स्ट्रीट जर्नल रिपोर्ट में लिखता है कि चंद्रयान-3 चांद तक लगभग 40 दिनों में पहुंचेगा। यह रूस के मुकाबले लंबी दूरी है।
भारत ने चांद तक पहुंचने के लिए ईंधन की बचत और गुरुत्वाकर्षण का फ़ायदा उठाने वाला तरीक़ा अपनाया है।
पिछले कुछ सालों में, इसरो ने दूसरे देशों के पेलोड्स या सैटलाइट को अंतरिक्ष में भेजकर पैसे कमाने की कोशिश की है। यहाँ तक कि विपणन सैटलाइट लॉन्चिंग के बड़े बाज़ार में इसकी मात्रा कम है।
इस क्षेत्र में रईस एलन मस्क की कंपनी स्पेस-एक्स भी अच्छा प्रदर्शन कर रही है।
नासा ने 2024 में चांद पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने की योजना बनाई है, और चीन भी 2030 से पहले ऐसा करने की सोच रहा है।
पहली बार इंसानों ने चांद पर कदम रखने की कोशिश 1966 में की थी, जब सोवियत यूनियन के लूना-9 ने चंद पर पहुंचने में सफलता प्राप्त की थी।
तीन साल बाद, 20 जुलाई 1969 को, अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रॉंग ने चंद्रमा पर कदम रखा और पहले इंसान बने थे।

रूस के लिए झटका और भारत की उम्मीदें
द न्यूयॉर्क टाइम्स भी रूस के असफलता और भारत के सपनों पर बात करता है।
अख़बार में यह लिखा है कि जो देश पहला था जिसने सोवियत संघ के रूप में चांद तक पहुँचने का प्रयास किया था, वह अब लूना-25 के क्रैश की वजह से झटका खा रहा है।
लूना-25 की उड़ान 11 अगस्त को शुरू हुई थी और इसका उद्देश्य चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचना था, लेकिन यह सफल नहीं हो सका।
कई देशों की सरकारें और निजी कंपनियां इस चांद के हिस्से तक पहुंचने का प्रयास कर रही हैं क्योंकि यहां पानी की संभावनाएं हैं और आगामी दिनों में यह रॉकेट के ईंधन की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है।
द न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक़, यह भारत के लिए एक मौक़ा है कि वह दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला देश बन सके।
अख़बार ने इसरो के प्रवक्ता सुधीर कुमार के बयान को भी प्रकट किया, जिनमें लूना-25 के क्रैश को दुर्भाग्यपूर्ण माना गया था।
सुधीर ने कहा था – ‘हर अंतरिक्ष कार्यक्रम बेहद ख़तरनाक होता है।